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Saturday, April 14, 2012

आध्यात्म का वैज्ञानिक आधार -9


देवी देवता एवं भूत प्रेत

                                स्वप्न से सभी लोग परिचित हैं और यह भी जानते हैं कि स्वप्न सोते समय ही दिखाई देते हैं। सोते समय स्वप्न देखना एक सामान्य प्रक्रिया है, परंतु बहुत कम लोग ही शायद यह जानते होंगे कि मनुष्य जागृत अवश्था में भी स्वप्न देख सकता है। इन दोनों में सिर्फ इतना अंतर होता है कि सोते समय हमारा शरीर पर नियंत्रण नहीं रहता एवं शरीर में स्थित ज्ञानेन्द्रियां भी सो जातीं हैं जबकि जागृत अवश्था में शरीर पर नियंत्रण बना रहता है एवं शरीर में स्थित ज्ञानेन्द्रियां भी जागृत अवश्था में होतीं हैं दोनों ही अवश्थाओं में हमारा मस्तिष्क विचार शून्य हो जाता है एवं मन वर्तमान से हटकर भूत या भविष्य में चला जाता है, एवं दोनों ही अवश्थाओं में वह जो देखता है वह मन में स्थित ज्ञानेन्द्रियों (अर्थात तीसरी आंख) से देखता है शरीर में स्थित भौतिक ज्ञानेन्द्रियों से नहीं। सोते समय देखे गए स्वप्न दो प्रकार के होते हैं।
1. सत्य
2. असत्य।
               ये दोनों  ही अनियंत्रित होते हैं, अर्थात मनुष्य का इन पर कोई नियंत्रण नहीं होता।
                 इसी प्रकार जागृत अवश्था में देखे गए स्वप्न भी दो प्रकार के होते हैं ये दोनों ही सत्य होते हैं।

1. नियंत्रित स्वप्न
2. अनियंत्रित स्वप्न
                  नियंत्रित स्वप्न वह हैं जिनके द्वारा हम ध्यान के माध्यम से अपने इच्छित देवी देवता के दर्शन करते हैं वार्तालाप करते हैं या भूत एवं भविष्य आदि की जानकारी प्राप्त करते हैं या हम वैसा ही देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं हम किसी भी देवी देवता को उसी रूप में देखते हैं जो आकृति हम पहिले से मन में बना लेते हैं, कोई देवी देवता कभी भौतिक रूप से प्रगट नहीं होते, हमेशा कोई भी इनके दर्शन करने वाला व्यक्ति इन्हें मानसिक रूप से अर्थात मन में स्थित ज्ञानेन्द्रियों (तीसरी आंख) से ही देखता है बिलकुल उसी प्रकार जैसे कि हम स्वप्न देखते हैं परंतु यह पूर्णतः सत्य होते हैं यहां हम पांचों ज्ञानेन्द्रियों से संबंधित ज्ञान के साथ अलौकिक  अनुभव भी कर सकते हैं। जागृत अवश्था में देखी गई कोई भी आकृति पूर्णतः स्पष्ट एवं सजीव होती है जबकि सोते समय स्वप्न में देखी गई कोई चीज उतनी स्पष्ट और सजीव नहीं होती। विस्तार से इसकी क्रिया पद्यति दूसरे भाग में लिखेंगे।

                    अनियंत्रित स्वप्न वह होते हैं जिसमें मनुष्य अनायास ही ऐसी घटनाओं, अन्य मनुष्य या कोई अन्य आकृतियों को देखता है जो वहां या इस दुनिया में ही नहीं हैं। सामान्य अवश्था में मनुष्य हमेशा वर्तमान काल में ही व्यवहार करता है परंतु जब किसी का मन वर्तमान से हटकर अन्य समय भूत या भविष्य में पहुंच जाता है तब ऐसी स्थिति निर्मित हो जाती है, इसे हम भूत प्रेत कहते हैं।
                    चूंकि अभी दुनिया में यह प्रश्न ही बना हुआ है कि क्या वास्तव में भूतप्रेत होते हैं?
                    इसका सही उत्तर है कि भौतिक रूप से कोई भूतप्रेत नहीं होते परंतु मानसिक रूप से भूत प्रेत होते हैं या हम यह कह सकते हैं कि भूत प्रेत जागृत अवश्था में देखे गए स्वप्न हैं। कभी कभी समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों ने भूत के फोटो लेने के भी दावे किए हैं परंतु यह बिलकुल ही गलत दावे हैं दुनिया में कोई इसे प्रमाणित नहीं कर सकता क्योंकि जो चीज भौतिक रूप से उपस्थित नहीं है उसकी कोई तस्वीर नहीं खींची जा सकती।
                   जैसा कि मन के प्रकरण में लिखा जा चुका है कि स्वप्न में देखे गए दृश्यों के आधार पर मन मस्तिष्क को आदेश देने लगता है और हमारा शरीर भी भौतिक रूप से क्रिया करने लगता है। इसी प्रकार जब जागृत अवश्था में मन वर्तमान से हट जाता है तब भी मन उस समय देखे गए दृश्यों के आधार पर मस्तिष्क को गलत आदेश देने लगता है एवं ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति स्वयं को या अन्य को कोई भी नुकसान पहुंचा सकता है या कुछ भी कर सकता है। इस स्थिति में मनुष्य के मस्तिष्क सहित उसकी पांचों ज्ञानेन्द्रियां गलत काम कर सकतीं हैं। उसकी ध्राण इंद्रिय ऐसी गंध महसूस कर सकती है जो वहां नहीं है उसकी जिव्हा ऐसा स्वाद महसूस कर सकती है जो वह खा ही नहीं रहा है, या जो वह खा रहा है उसके अलावा उसमें वह किसी दूसरी चीज का स्वाद महसूस कर सकता है। उसकी स्पर्श इंद्रिय महसूस कर सकती है कि उसे कोई मार रहा है एवं इससे उसके शरीर पर मार के निशान भी उभर सकते हैं, वह यह भी महसूस कर सकता है कि उसके शरीर में कोई कांटा चुभा रहा है इससे उसके शरीर से खून भी निकल सकता है, यह भी हो सकता है कि उसकी स्वयं की मांस पेशियां सिकुड़कर उसका गला दबा दें और बाद में लोग यह समझें कि भूत ने गला दबा दिया है। उसकी आंख ऐसे दृश्य या किसी  मृत या जीवित व्यक्ति को देख सकती है जो वहां नहीं है। उसके कान ऐसी आवाज सुन सकते हैं जो वहां कोई नहीं बोल रहा हो या वह स्वयं किसी अन्य जीवित या मृत व्यक्ति की आवाज में बोल सकता है महिला पुरुष की आवाज में और पुरुष महिला की आवाज में बात कर सकता है। यह सब मन द्वारा गलत आदेश मिलने पर प्रभावित व्यक्ति का स्वयं का मस्तिष्क ही करता है। यह सब काम पीड़ित व्यक्ति अपने शरीर में स्थित भौतिक ज्ञानेन्द्रियों से नहीं करता है यह काम वह मन में स्थित ज्ञानेन्द्रियों से करता है, बिलकुल वैसे ही जैसा कि स्वप्न देखते समय होता है। यदि वह भौतिक आंखों से भूत प्रेत देख रहा होता तब वहां उपस्थित अन्य लोग भी वही दृश्य देखते परंतु ऐसा नहीं होता है पीड़ित व्यक्ति अकेला ही ऐसे दृश्य देखता है।
                        भूत प्रेत कई प्रकार के होते हैं जिनमें निम्न प्रमुख हैं।
       1. मन का वर्तमान से हटकर अन्य समय में चले जानाः- इसमें मनुष्य की स्थिति उपरोक्तानुसार हो जाती है।
       2. किसी विशेष स्थान पर विशेष तरगों की अति सक्रियताः- इसमें घर के सामान का अपने आप इधर उधर होना, गिरना, उपर उठना, कमरे में तेज हवा का झौंका महसूस करना, कमरे के खिड़की दखाजे अपने आप खुलना बंद होना, पत्थर आदि गिरना, कहीं भी आग लग जाना, कोई आबाजें सुनाई देना आदि ।
       3. आकाशीय परावर्तनः- किसी स्थान पर ऐसे दृश्य दिखाई देना जो वहां नहीं है परंतु घरती पर कहीं दूसरी जगह है यह भी अक्सर विशेष जगहों पर ही होता है इससे कभी कभी वाहन भी दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं एवं उस स्थान पर अक्सर दुर्घनाऐं होतीं रहतीं हैं, ऐसे दृश्य क्षण भर के लिए ही दिखाई देते हैं फिर गायब हो जाते हैं रेगिस्थान में दिखने वाली मृगमारीचिका भी आकाशीय परावर्तन है। अंतरिक्ष में घूमते बर्फ के पिडों से परावर्तन के  कारण ऐसा हो जाता है।
       4. दिशा भ्रमः- जिसे बोलचाल की भाषा में भूलभुलैया कहते हैं। यह अक्सर अंधेरी रात में पगदंडी एवं कच्चे रास्ते वाले मैदानी इलाकों में होता है व्यक्ति किसी गांव की रोशनी को या आगे जाते हुए किसी व्यक्ति को देखता है और अनुमान लगाता है कि वह उस जगह तक दस मिनिट मे पहुंच जायगा परंतु रात भर चलने के बाद भी वह उस जगह तक नहीं पहुंचता सुबह की रोशनी होने पर पता चलता है कि वह किसी विषेश क्षेत्र में ही चक्कर लगा रहा था ऐसा किसी भी वाहन, घुड़सवार या समूह में चलने वालों के साथ भी हो सकता है। यदि वह किसी का अनुसरण कर रहा है तब वह किसी भी सही या गलत स्थान पर पहुंच सकता है। यह स्थिति तभी समाप्त होती है जब वह कुछ देर के लिए रुक जाय या सुबह का उजाला हो जाय। दिशा भ्रम एक बीमारी भी होती है इससे पीड़ित व्यक्ति अपने चिर परिचित स्थान  या अपने घर का ही रास्ता भूल जाता है।
             
                     भूत प्रेत से प्रभावित होने की घटनाऐं अक्सर अशिक्षित एवं ग्रामीण इलाकों मे ही ज्यादा होतीं है क्योंकि इन लोगों में अंधविश्वास एवं भूत प्रेत की धारणा बहुत प्रबल होती है। धारणा का मतलब होता है दृढ़ विश्वास। चूंकि शहरी क्षेत्रों में भी ज्यादातर लोग अंधविश्वासी होते हैं परंतु इसमें इनकी धारणा लगभग पचास प्रतिशत ही होती है इसलिए शहरी क्षेत्रों में बहुत कम लोग ही इससे प्रभावित हो पाते हैं। दूसरे प्रकार अर्थात तरंगों की अति सक्रियता का धारणा से कोई संबंध नहीं होता यह किसी के भी साथ हो सकता है परंतु जब कोई व्यक्ति ऐसी जगह पर पहुंच जाता है तब भय के कारण उसमें भी धारण प्रवल हो जाती है और ऐसे स्थान पर वह भूत प्रेत से भी प्रभावित हो जाता है। तीसरे प्रकार का भूत प्रेत या धारणा से कोई संबंध नहीं है। चौथे प्रकार में भी यदि व्यक्ति अकेला है औेर डर जाता है तब यहां भी भूत प्रेत का शिकार हो सकता है।
                     किसी व्यक्ति में देवी देवता का भाव आ जाना भी इसी प्रकार की प्रक्रिया है इसमें वह मन से प्रवल धारणा के कारण तो उस देवी देवता से जुड़ जाता है परंतु उसे उनकी आराधना की क्रिया पद्यति का सही ज्ञान नहीं होता इसमें वह देवी देवता के माध्यम से जो भी बोलता है वह सही व गलत दोनों हो सकता है जैसा कि उपर लिखा गया है कि प्रकृति में सत रज एवं तम तीन गुण होते हैं इनमें यदि उसके उपर सत का प्रभाव है तब वह सही बोलेगा यदि तम का प्रभाव है तब गलत बोलेगा यह भूत प्रेत के समान उग्र नहीं होते सत से प्रभावित व्यक्ति बिलकुल शांत स्थिति में होता है एवं तम से प्रभावित व्यक्ति कुछ उग्र हो सकता है।
                         इसी प्रकार व्यक्ति का मन जब पूर्व जन्म के समय से जुड़ जाता है तब उसे पूर्व जन्म की याद आ जाती है। इस प्रकार ये सभी जागृत अवश्था में देखे गए स्वप्न हैं। मन के शरीर के बाहर कहीं भी जाने की क्षमता एवं सापेक्षवाद के कारण ऐसा होता है। उपरोक्त किसी भी चीज से प्रभावित व्यक्ति जागृत अवश्था मे होते हुए भी वर्तमान काल में व्यवहार नहीं करता इन अवश्थाओं में उसे शरीर का पूरा ध्यान रहता है एवं शरीर पर नियंत्रण भी बना रहता है चूंकि पहली अवश्था में शरीर से नियंत्रण भी खो सकता है।
                        उपरोक्त तथ्यों से पता चलता है कि इस दुनिया या ब्रह्मांड में जो भी घटित होता है, या मनुष्य अपनी ज्ञानेन्द्रियों से जो देखता सुनता समझाता है उसके पीछे क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया के आधार पर एक निश्चित वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है। जिसे लोग समझते नहीं, उसे चमत्कार, भूत प्रेत या दैवीय शक्ति आदि कहने लगते हैं। देवी देवताओं के नाम पर चमत्कार दिखाने या स्वयं को देवी देवता का कृपा पात्र बताकर लोगों को प्रलोभन देने वाले एवं इलाज आदि करने वाले लोग ठग होते हैं इनसे लोगों को हमेशा दूर रहना चाहिए। ये लोग चमत्कार दिखाकर लोगों को आकर्षित करने के लिए अक्सर जादू, हाथ की सफाई, सम्मोहन, रसायन विज्ञान आदि का प्रयोग करते हैं। धर्म या आध्यात्म के क्षेत्र में किसी प्रकार का कोई चमत्कार नहीं होता यह स्वस्थ एवं सुखी जीवन जीने के लिए एक उच्चस्तरीय ज्ञान है।

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