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Saturday, April 14, 2012

आध्यात्म का वैज्ञानिक आधार -1


 लेखकः-इंजी. आर.एस. ठाकुर                    
भाग - 1

आध्यात्म का वैज्ञानिक आधार

                              दुनिया में धर्म और विज्ञान को एक दूसरे के विपरीत दो अलग अलग विषय माना जाता है जबकि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। संसार दो प्रकार का होता है पहला दृश्य संसार जो हमें आखों से दिखाई देता है दूसरा अदृश्य संसार जो हमें आखों से दिखाई नहीं देता, हम दृश्य संसार को भौतिक संसार एवं अदृश्य संसार को मानसिक संसार भी कहते है। भौतिक संसार को सभी व्यक्ति एक जैसा देखते हैं एवं एक समान व्यवहार करते हैं परंतु अदृश्य या मानसिक संसार को प्रत्येक व्यक्ति अलग तरह से देखता एवं अलग व्यवहार करता है। विज्ञान दृश्य संसार का विषय है एवं धर्म अदृश्य संसार का विषय है, चूंकि अदृश्य संसार की प्रतिक्रिया से ही दृश्य संसार प्रगट होता है इसलिए धर्म या आध्यात्म को ही मूल विज्ञान कहा गया है। प्रस्तुत लेख आध्यात्म और विज्ञान को जोड़ने का एक प्रयास है इसमें न तो विज्ञान के किसी सिद्धांत का उलंघन होता है न ही  धर्म के किसी सिद्धांत का उलंघन होता है। विज्ञान को समझे बिना यदि कोई व्यक्ति यह कहता है कि वह धर्म या आध्यात्म का ज्ञाता है तो वह झूठ बोलता है, जब तक कोई व्यक्ति ब्रहृांड एवं मनुष्य की संपूर्ण वैज्ञानिक संरचना एवं क्रिया प्रणाली को नहीं समझता तब तक वह धर्म या आध्यात्म को नहीं समझ सकता। यह लेख भौतिक विज्ञान जीव विज्ञान सापेक्षवाद एवं मनोविज्ञान पर आधारित है। भौतिक एवं जीव विज्ञान दृश्य संसार का विषय है सापेक्षवाद एवं मनोविज्ञान अदृश्य संसार के विषय हैं इसमें चारों के आपसी संबंध एवं क्रियाप्रणाली को दर्शाया गया है। यह लेख वेदमाता गायत्री द्वारा दी गई शिक्षा, स्वयं के अनुभव एवं आत्मज्ञान पर आधारित है। यहां धर्म एवं आध्यात्म का वर्णन आधुनिक भाषा एवं वैज्ञानिक आधार पर किया गया है धार्मिक एवं वैज्ञानिक ग्रन्थों में एक ही चीज के अलग अलग नाम होने के कारण लोग इसे समझ नहीं पाते। इस लेख के प्रथम भाग में धर्म को समझने के लिए आवश्यक वैज्ञानिक तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है एवं दूसरे भाग में योग के माध्यम से ईश्वर तक पहुंचने का सही तरीका बताया गया है। लोग आज धर्म के वास्तविक स्वरूप को भूल चुके हैं धर्म अब अंधविश्वास, व्यवसाय और राजनीति तक ही सीमित रह गया है। यह लेख धर्म के वास्तविक स्वरूप को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास है। इस लेख में देवी देवताओं, भूत प्रेत, तंत्र मंत्र एवं अन्य धर्मिक रहस्यों की वैज्ञानिक व्याख्या की गई है। यदि हम धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझना चाहते हैं तब इस लेख के प्रथम भाग में वर्णित वैज्ञानिक तथ्यों को समझना आवश्यक है इसको समझे बिना कोई भी व्यक्ति धर्म के वास्तविक स्वरूप को नहीं समझ सकता इसमें ईश्वर, आत्मा, मन, प्राण आदि सहित मानव शरीर की सूक्ष्म संरचना एवं क्रियाप्रणाली को दर्शाया गया है इसे पढ़कर हम स्वयं के वारे में सब कुछ जान सकते हैं। आध्यात्म एवं धर्म को समझने के लिए इसे जानना अति आवश्यक है। इस लेख में वैज्ञानिक या वेद पुराणों की भाषा का उपयोग नही किया गया है। इसमें सरल एवं सबकी समझ में आने योग्य आधुनिक बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया गया है। इस लेख में किसी भी चीज का पारिभाषिक एवं सैद्धांतिक तौर पर ही उल्लेख किया गया है विस्तार से जानने के लिए यहां दिए गए सिद्धांतों को आधार मानकर प्रमाणिक धार्मिक एवं वैज्ञानिक ग्रन्थों का अध्यन कर सकते हैं।
                  इस लेख में निम्न विषयों की व्याख्या की गई है।

 1. आध्यात्म और विज्ञान
 2. धर्म
 3. ईश्वर
 4. आत्मा
 5. मन
 6. ज्ञान
 7. प्राण
 8. सापेक्षवाद
 9. देवी देवता एवं भूत प्रेत
10. ब्रह्मांड

आध्यात्म और विज्ञान


                     प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है एवं विज्ञान के बिना धर्म अंधा है। आइंस्टीन के सापेक्षवाद के सिद्धांत पर आज भी खोज जारी है परंतु इनके उपरोक्त कथन पर आज तक कोई विचार नहीं किया गया प्रस्तुत लेख में इनके धर्म एवं विज्ञान से संबंधित कथन को प्रमाणित करने का प्रयास किया गया है। 
                  आध्यात्म विज्ञान एक मूल विज्ञान है जबकि आधुनिक विज्ञान इसका बिगड़ा हुआ स्वरूप है, आध्यात्म विज्ञान पूर्ण ज्ञान है जबकि आधुनिक विज्ञान अधूरा ज्ञान है क्योंकि जब तक किसी कार्य या ज्ञान के माध्यम से हम ईश्वर तक न पहुंचें तब तक ज्ञान अधूरा रहता है तथा अधूरा ज्ञान हमेशा घातक होता है, जिसका परिणाम आज सभी देख रहे हैं। विज्ञान परमाणु को द्रव्य का सूक्ष्मतम कण मानकर अध्यन करता है जबकि आध्यात्म परमाणु को द्रव्य का अंतिम स्थूल कण मानकर अध्यन करता है अर्थात विज्ञान अनंत की ओर चलता है एवं आध्यात्म अंत की ओर चलता है। विज्ञान द्रव्य को अविनाशी मानता है जबकि आध्यात्म के अनुसार द्रव्य का विनाश हो जाता है । ब्रह्माडीय द्रव्य दो रूपों में होता है एक जड़ दूसरा चेतन, विज्ञान जड़ तत्व का अध्यन करता है एवं आध्यात्म चेतन तत्व का अध्यन करता है, चेतन तत्व की प्रतिक्रिया से ही जड़ तत्व की उतपत्ति होती है। विज्ञान का कथन है कि हमारे पूर्वज बानर थे अब हम ज्ञानवान बनकर उन्नति कर रहे हैं जबकि आध्यात्म का कथन है कि हमारे पूर्वज ब्रह्मज्ञानी ऋषि मुनि थे अब हम अज्ञानी बनकर विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। वैसे इस ब्रह्मांड में जिस चीज का जन्म होता है चाहे वह कुछ भी हो हमेशा विनाश अर्थात मृत्यु की ओर ही बढ़ता है यह ब्रह्म सत्य है, अतः आध्यात्म का कथन ही सही प्रतीत होता है। हम अनन्त की ओर चलकर किसी लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते जबकि अंत की ओर चलकर लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। विज्ञान का कथन है कि मनुष्य एक ज्ञानवान प्राणी है परंतु आघ्यात्म का कथन है कि ज्ञान मनुष्य में नहीं द्रव्य (आत्मा) में होता है क्योंकि द्रव्य ने मनुष्य को पैदा किया है न कि मनुष्य ने द्रव्य को, मनुष्य सिर्फ इस ज्ञान को व्यक्त करने का एक माघ्यम मात्र है। विज्ञान का न तो कोई अंतिम लक्ष्य निर्धारित है न ही कोई फल (परिणाम) निर्धारित है, जबकि आध्यात्म का अंतिम लक्ष्य भी निर्धारित है एवं फल भी निर्धारित है। आध्यात्म का लक्ष्य है ईश्वर तक पहुंचना एवं फल मोक्ष है (वैज्ञानिक आधार पर मोक्ष किसे कहते है हम इसी लेख में आगे समझेंगे)। लक्ष्य विहीन विज्ञान का परिणाम यही हो सकता है कि थककर या किसी गढ्ढे में गिरकर विनाश। इसी तथ्य को समझकर हमारे ब्रह्मज्ञानी पूर्वजों ने अंत के रास्ते को चुना क्योंकि अंत के रास्ते पर चलकर मनुष्य ईश्वर तक पहुंचकर मोक्ष प्राप्त कर जन्म मृत्यु के बंधन से छुटकारा प्राप्त कर लेगा, एवं अनंत के रास्ते पर चलकर विभिन्न योनियों में जन्म लेता हुआ दुख निवृति कर सुख प्राप्ति का ही प्रयास करता रहेगा। आधुनिक शिक्षा भौतिकवाद एवं पूंजीवाद को बढ़ावा देकर मनुष्य का नैतिक पतन कर उसे विनाश की ओर ले जा रही है, जबकि आध्यात्मिक शिक्षा कैसी भी परिस्थितियों में मनुष्य को सुखमय जीवन जीने की कला सिखाती है। सुख और दुख मनुष्य की मानसिक भावना है यह कोई भौतिक वस्तु नहीं है, यदि दुख को हटा दिया जाय तो सुख ही शेष बचता है आध्यात्म हमें अपने जीवन से दुख को अलग करने की कला सिखाता है जिससे मनुष्य स्वस्थ, सुखी एवं दीर्धायु जीवन व्यतीत कर सकता है, जबकि आधुनिक विज्ञान हमें दुखों को बढ़ाने की कला सिखाता है जिससे मनुष्य तनाव एवं कभी न ठीक होने वाली क्रानिक बीमारियों का शिकार बनता है। आध्यात्म में धन की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है जबकि भौतिकवाद में धन प्रथम आवश्याकता है। आध्यात्म एवं विज्ञान में यही अंतर है।

4 comments:

  1. Very critically analyzed. My personal current attitudes more or less flows through Spiritual Science. Of course, if you give up material want instantly you feel happy. Thank You for your cooperation for giving chance to read this.

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  2. MrR.S. Thakhur you tried to explore into Dharam.A good effort to study with your material eyes.The right word for Dharam is righteousness not relegion. This covers four system 1.Education(shiksha) 2. Self Realization(swa adhay) 3. Spiritualization(adhyama) 4 knowledge (Tawattyagyan)supreme knowledge and the achievement of the righteousness is immortality and emancipation from all worldly bonds besides being you live in this world.


    Avaneesh 9412738783

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  3. gurudev ki bahut acchi pustak he ye thanks for sharing

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  4. आज अचानक आपका यह आलेख पढ़ा ।
    आध्यात्म का वैज्ञानिक आधार पढा ।
    बहुत ही सुंदर वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित ज्ञान वर्धक आलेख है ।

    पूरी श्रृंखला पढ़ने का प्रयास करूंगा ।

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