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Saturday, April 14, 2012

आध्यात्म का वैज्ञानिक आधार -8


सापेक्षवाद

                      समय एवं गति की तुलना को सापेक्षवाद कहते हैं। सापेक्षवाद गणित का विषय है हो सकता है सबको समझ में न आए परंतु आध्यात्म को समझने के लिए सापेक्षवाद को समझना जरूरी है मन एवं ध्यान का इससे सीधा संबंध है, देवी देवताओं के दर्शन करना, भूत प्रेत देखना, पिछले जन्मों की याद आ जाना, किसी बहुत पुरानी घटना को देखना, स्वप्न देखना आदि का सापेक्षवाद से सीधा संबंध है।
                     जब किसी वस्तु से निकली प्रकाश की किरण हमारी आंख से टकराती है तब हमें वह वस्तु दिखाई देती है। इस वस्तु से निकली प्रकाश की किरण एक सेकिंड में तीन लाख किलोमीटर चलती है तथा इसी के अनुसार समय आगे बढ़ता है यदि हम तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकिंड की गति से चलें तब समय रुक जाएगा, यदि हम इससे तेज गति से चलें तब समय पीछे चलने लगेगा अर्थात सोमवार के बाद रविवार आएगा या तीस तरीख के बाद उन्तीस तारीख आएगी एवं दिसम्वर के बाद नवम्वर आएगा आदि या इस प्रकार कह सकते हैं कि हम पिछले समय में घटित घटनाओं को देखने लगेंगे अर्थात हम भूतकाल में पहुंच जाऐंगे। हम इसे एक काल्पनिक प्रयोग द्वारा समझ सकते हैं।
                       मानलो हमारे पास एक ऐसी घड़ी है जिसे हम ब्रह्मांड के किसी भी कोने से देख सकते हैं, हम इस घड़ी के घंटा मिनिट एवं सेकिंड के कांटों को मिलाकर इसमें ठीक बारह बजा देते हैं। ठीक बारह बजे इस घड़़ी के कांटे से जो प्रकाश की किरण निकलेगी वह तीन लाख किलो मीटर प्रति सेकिंड की गति से आगे बढ़ेगी ठीक बारह बजे हम भी इस किरण के साथ किरण की दिशा में तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकिंड की गति से आगे बढ़ते हैं अब हमारी गति एवं इस धड़ी के कांटे से निकली किरण की गति बराबर है। हम कितने भी समय तक इस गति से चलते रहें हमें घड़ी का कांटा उसी जगह रुका हुआ दिखता रहेगा अर्थात इस गति से हम जब तक चलते रहेंगे तब तक हमें इस घड़ी के तीनों कांटे बारह पर ही स्थिर दिखते रहेंगे अर्थात समय रुका रहेगा, जबकि वास्तव में घड़ी का कांटा अपनी सामान्य गति से आगे बढ़ रहा होगा, यदि हम एक घंटा इस गति से चलते हैं तब घड़ी में वास्तव में तो एक बज गया होगा परंतु हमें इसके तीनों कांटे बारह पर ही दिख रहे होंगे अर्थात हम घरती पर बारह बजे घटित घटना को ही देख रहे होंगे या इस प्रकार कह सकते हैं कि समय एक घंटा पीछे पहुंच जाएगा। अब हम इस गति से एक घंटे चलने के बाद रुक जाते हैं हमारे रुक जाने पर हमें यह घड़ी सामान्य गति से चलती हुई दिखने लगेगी अर्थात इसका कांटा अब सामान्य गति से आगे बढ़ते हुए दिखने लगेगा। अब हम यहां एक घंटे अर्थात इस घड़ी में एक बजने तक रुकते हैं जब हमें इसमें एक बजा दिखेगा तब वास्तव में इसमें दो बज गए होंगे, एवं जब तक हम यहां रुके रहेंगे तब तक समय भी एक घंटे पीछे चलता रहेगा अब हम एक बजे उसी गति से वापिस लौटते हैं लौटते समय हमें इस घड़ी का कांटा दुगनी गति से आगे बढ़ता दिखाई देगा क्योंकि हम तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकिंड की गति से घड़ी की ओर बढ़ रहे हैं एवं इस घड़ी से निकली प्रकाश की किरण भी तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकिंड की गति से विपरीत दिशा में हमारी ओर बढ़ रही है एक घंटा प्रकाश की गति से चलने के बाद जब हम घरती पर पहुंचेंगे तब इस घड़ी में हम तीन बजे देखंगे और वास्तव में भी तीन बजे होंगे अर्थात वापिस लौटने पर वास्तविक एवं काल्पनिक समय बरावर होगा। इससे पता चलता है कि जब तक हम एक घंटा प्रकाश की गति से आगे बढ़ते रहे तब तक समय रुका रहा जब हम रुक गए तब समय सामान्य गति से आगे बढ़ने लगा जब हम लौटे तब समय दुगनी गति से आगे बढ़ने लगा एवं घरती पर पहुंचने पर समय बराबर हो गया। इससे यह सिद्ध होता है कि जब हम गति में होते हैं एवं जहां से हम चले हैं उस स्थान के वास्तविक समय के दृश्य को नहीं देख पाते हम  पिछले समय में घटित घटना को देखते हैं फिर चाहे कितनी भी तेज या धीमी गति से चल रहे हों, इससे गणतीय सूत्र भी बनाया जा सकता है। ऐसा तभी संभव है जब हम भौतिक रूप से प्रकाश की गति से चल सकें अब तक विज्ञान या अन्य कोई भी इस गति से चलने में सक्षम नहीं है। भौतिक रूप से देखने के लिए हमारी गति कम से कम अड़तीस हजार किलोमीटर प्रति सेकिंड होना आवश्यक है क्योंकि हमारी आंख सेकिंड के आठवें भाग से कम समय में होने वाले पखिर्तन को नहीं देख सकती, जबकि प्रकाश की गति के अनुसार सेकिंड के प्रति तीन लाखवें भाग में दृश्य पखिर्तन होता रहता है अर्थात एक सेकिंड में तीन लाख बार दृश्य बदल चुका होता है। यदि विज्ञान प्रकाश तरंगों की गति पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है तब भी पिछले समय में घटित घटना को देखा जा सकेगा या कोई ऐसा पारदर्शी माध्यम बनाया जा सकेगा जिससे निकलने पर इनकी गति कम हो जाय। चूंकि विज्ञान का अभी किसी भी प्रकार की तरंगों की गति पर कोई नियंत्रण नहीं है।
                   हम मानसिक रूप से प्रकाश की गति से भी कई गुना तेज गति से चल सकते हैं परंतु मानसिक रूप से चलने पर यह नियम लागू नहीं होता इसमें थोड़ा सा बदलाव हो जाता है इसे भी हम उपरोक्त प्रयोग द्वारा ही दूसरी तरह से समझ सकते हैं।
                   उपरोक्त प्रयोग के अनुसार जब हम एक घंटे प्रकाश की गति से चलने के बाद यहां पहुंचे तब वास्तविक एवं काल्पनिक समय में एक घंटे का अंतर था अर्थात घड़ी में तो एक बज गया था परंतु हमें  इसमें बारह बजा ही दिख रहा था, हमारे यहां रुकते ही यह अंतर समय की सामान्य गति से कम होने लगेगा एवं एक घंटे बाद यह अंतर शून्य हो जाएगा अर्थात हम घरती पर वापिस पहुंच जाऐंगे तब इस घड़ी में एक ही बजा होगा क्योंकि लौटते समय हमें जो एक घंटा का समय लगा वह काल्पनिक समय है, या लौटने में जो वास्तविक समय लगा वह शून्य है परंतु जाते समय जो समय लगा वह वास्तविक समय था। एक घंटे तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकिंड की गति से जब तक हम चलते रहे तब तक हमें घड़ी के कांटे बारह पर ही दिखते रहे। जिस समय हम यहां रुके तब घरती पर एक घंटे पूर्व का दृश्य हमें दिखाई दे रहा था परंतु हमारे यहां रुक जाने से समय नहीं रुकेगा वह अपनी सामान्य गति से आगे बढ़ता रहेगा अतः हम स्वतः ही वापिस लौटने लगेंगे एवं एक घंटे बाद हम अपने मूल स्थान पर पहुंच जाऐंगे, मानसिक रूप से चलने पर यही नियम लागू होता है। चूंकि यह उदाहरण सिर्फ समझने के लिए है हमारा मन बहुत तेज गति से चलता है इसे ब्रह्मांड में कहीं भी पहुंचने में एक सेकिंड से अधिक समय नहीं लगता।                    
                    सापेक्षवाद के सिद्धांत के अनुसार इस ब्रह्मांड में या धरती पर जो भी दृश्य प्रगट होता है वह तरंग रूप में पखिर्तित होकर तीन लाख किलोमीटर प्रति सेंकिंड की गति से ब्रह्मांड में आगे बढ़ता रहता है यह कभी नष्ट नहीं होता एवं इसके स्थान पर इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप अगले क्षण नई स्थिति प्रगट होती है इसका फैलाव सभी दिशाओं में होता है जिस प्रकार कि सूर्य का प्रकाश सभी दिशाओं में फैलता है अर्थात एक केन्द्र बिन्दु से निकलकर दृश्य तरंगें सभी दिशाओं में फैलती रहतीं हैं। समय को तीन भागों में विभक्त किया गया है।
1. वर्तमान काल
2. भूत काल
3. भविष्य काल
                    वर्तमान भूतकाल बनकर आगे बढ़ जाता है एवं वर्तमान की प्रतिक्रिया स्वरूप अगले छड़ भविष्य प्रगट होकर वर्तमान बन जाता है, इसी प्रकार समय और दृश्य आगे बढ़ते रहते हैं सामान्य अवश्था में हम सिर्फ वर्तमान को ही देख सकते हैं भूत और भविष्य को नहीं देख सकते। हमें जितने पिछले समय का दृश्य देखना है तब हमें उतनी ही तीव्र गति से आगे बढ़ना होगा। मानलो आज हमारी आयु साठ वर्ष हैं हम स्वयं को दस वर्ष का देखना चाहते हैं तब हमें पचास प्रकाश वर्ष आगे जाना होगा तब हम स्वयं को दस वर्ष का या पचास वर्ष पूर्व का दृश्य देख पाऐंगे। ( प्रकाश तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकिंड की गति से एक वर्ष में जितनी दूरी तय करता है उतनी दूरी को एक प्रकाश वर्ष कहते हैं )। ऐसा करना विज्ञान या किसी के भी लिए भौतिक रूप से सम्भव नहीं है, परंतु मानसिक रूप से यह कार्य किया जा सकता है जैसा कि मन के प्रकरण में लिखा जा चुका है कि ज्ञानेन्द्रियां हमारे मन में स्थित हैं एवं मन ब्रह्मांड में किसी भी गति से कहीं भी जाने में सक्षम है अतः हमारा मन वहां पहुंचकर पांचों ज्ञानेन्द्रियों से संबंधित गंध, स्वाद, स्पर्श, दृश्य एवं शब्द का ज्ञान प्राप्त कर सकता है परंतु इस स्थिति में भौतिक रूप से कोई पखिर्तन नहीं कर सकता। इसे हम एक काल्पनिक प्रयोग द्वारा समझ सकते हैं।
                    मानलो आज हमारी आयु साठ वर्ष है एवं हम स्वयं को दस वर्ष का देखना चाहते हैं इसके लिए हमें ब्रह्मांड में पचास प्रकाश वर्ष आगे जाना होगा हम घड़ी के ठीक छः बजे ध्यान के माध्यम से एक सेकिंड में पचास प्रकाश वर्ष आगे पहुचते हैं यहां पहुंचकर हम स्वयं को दस वर्ष का देखेंगे अर्थात समय पचास वर्ष पीछे पहुंच जाएगा अब हम यहां रुक जाते हैं हमारे यहां रुकते ही समय सामान्य गति से आगे बढ़ने लगेगा अब यहां हम पचास वर्ष तक रुकते हैं, यहां रुकते ही हम हमारी दस वर्ष की आयु से साठ वर्ष तक की आयु में जो भी घटनाएं घटित हुईं थीं उन्हें उसी क्रम में हम फिर से देखेंगे एवं दस वर्ष से साठ वर्ष के जीवन काल में जो भी सुख दुख हमने घरती पर महसूस किया था यहां भी महसूस करेंगे साथ ही हम यह भी महसूस करेंगे कि हमने यहां पचास वर्ष बिताए। जब हम घरती पर लौटेंगे तब हमारी आयु सिर्फ एक सेकिंड ही बढ़ी होगी, क्योंकि हम जब गये थे तब घड़ी में छः बजे थे परंतु जब लौटे तब इस घड़ी में छः बजकर एक सेकिंड हुआ होगा क्योंकि पचास प्रकाश वर्ष प्रति सेकिंड की गति से पचास वर्ष पीछे जाने में हमें सिर्फ एक सेकिंड लगा जो कि वास्तविक समय है यहां रुककर हमने जो पचास वर्ष बिताए वह काल्पनिक समय है यहां हमें पचास वर्ष बिताने के लिए जो वास्तविक समय लगा वह शून्य है। महाभारत में भी युधिष्ठर से सबंधित बिलकुल ऐसा ही प्रसंग दिया गया है। इसी आधार पर हम पिछले जन्मों के जीवन को भी देख सकते हैं योग वशिष्ठ में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है यह पूरा ग्रन्थ ही सापेक्षवाद पर आधारित है। चूंकि ध्यान के समय शून्यकाल में हम सैकडों हजारों वर्षों का समय कैसे बिता लेते हैं इसकी कोई सैद्धांतिक जानकारी किसी को नहीं है  यह अवश्य कहा जा सकता है कि आयु शरीर की बढ़ती है मन की नहीं और भूतकाल में हमारा मन जाता है शरीर नहीं इसलिए ऐसा हो सकता है। हमारा मन भूत या भविष्य किसी भी काल में जा सकता है, परंतु भविष्य काल में कैसे पहुंचते हैं इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है।

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