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Friday, November 11, 2011

आध्यात्म का वैज्ञानिक आधार - 8


ब्रह्मांड की संरचना

                  ब्रह्मांड की उतपत्ति निराकार ईश्वर से होती है। आदि काल में ब्रह्मांड शून्य था अर्थात इसमें निराकार ईश्वर के अलावा कुछ भी नहीं था। ईश्वर ने जब एक से अनेक होने की इच्छा की तब ईश्वर ने निराकार से साकार होना शुरु किया। चूंकि ब्रह्मांड में कोई भी खाली जगह नहीं होती सब जगह ईश्वर व्याप्त रहता है। अतः जब ईश्वर निराकार से साकार होने के लिए अपना आकार बढ़ाता है तब ब्रह्मांड में असीमित दबाव उतपन्न होता है जिससे असीमित उर्जा उतपन्न होती है बाद में दबाव के कारण इसमें विस्फोट होने लगते हैं जिससे सूर्य तारों ग्रहों उपग्रहों आदि का निर्माण होता है। ब्रह्मांड की उतपत्ति के संबंध में विज्ञान एवं धर्म के प्रायः एक ही सिद्धांत है, चूंकि विज्ञान का कथन है कि पूरे ब्रह्मांड की उतपत्ति एक बार में हुई परंतु ब्रह्मांड में रोज नए तारों का जन्म एवं पुराने तारों की मृत्यु होती ही रहती हैं यह क्रिया आदि काल से चल रही है यह विज्ञान भी जानता है विज्ञान ने यह भी पता कर लिया है कि ब्रह्मांड फैल रहा है। यह उसी प्रकार होता रहता है, जिस प्रकार पृथ्वी पर प्राणियों का जन्म एवं मृत्यु होती रहती है। तारों या सूर्य में विस्फोट के समय जो पिंड अलग होकर अंतरिक्ष में फैल जाते हैं वह ग्रह एवं उपग्रह बन जाते हैं एवं गुरुत्वाकर्षण के कारण अपने सूर्य का चक्कर लगाने लगते हैं। चूंकि सूर्य स्वयं उर्जा उत्सर्जित करने में सक्षम होते हैं परंतु विस्फोट से अलग हुए पिंड स्वयं उर्जा उत्सर्जित नहीं कर सकते अतः यह धीरे धीरे ठंडे होकर उर्जा रूप से वायु, द्रव और ठोस रूप में बदलने लगते हैं। हमारी पृथ्वी भी इसी प्रकार का आदि काल में सूर्य से अलग हुआ एक पिंड है। सूर्य सहित सूर्य से अलग हुए सभी ग्रह हमारी पृथ्वी पर जलवायु, प्राणियों, वनस्पतियों आदि के जीवन के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं इनमें से चंद्रमा या किसी ग्रह के न होने से पृथ्वी पर प्राणियों का जीवन संभव नहीं है। मनुष्य जीवन सहित पृथ्वी पर होने वाले सभी क्रिया कलापों पर इनका प्रभाव होता है, इसलिए सूर्य सहित सभी ग्रहों की देवता के रूप में पूजा आराधना की जाती है। यह हम सब को जान लेना चाहिए कि मनुष्य एवं अन्य प्राणियों सहित हमारे सौर मंडल में जो कुछ भी है वह सूर्य का ही अंश है।

                    सूर्य के जीवनकाल में पृथ्वी की कई बार पुनर्संरचना हो जाती है, इसे प्रलय कहते हैं। प्रलय भी दो प्रकार का होता है।

1. प्रलय। इसमें पृथ्वी की पुनर्संरचना होती है।

2. महाप्रलय। इसमें सूर्य सहित पूरे सौरमंडल के ग्रह एवं उपग्रहों का अंत हो जाता है एवं फिर इनका पुनर्जन्म नहीं होता।

प्रलयः- जब पृथ्वी पूरी तरह प्रदूषित हो जाती है एवं पृथ्वी पर मनुष्य सहित अन्य प्राणियों एवं वनस्पितियों का  जीवन कष्टप्रद हो जाता है तथा मनुष्य में ज्ञान का लोप होकर अज्ञान अपने चरम पर पहुंच जाता है, तब सूर्य में प्रज्वाल उठते हैं जिससे पृथ्वी पर अत्याधिक ताप बढ़ता है। ताप बढ़ने से बर्फ पिघलने लगती है जिससे समुद्र के पानी का जल स्तर बढ़ने से सारी पृथ्वी जलमग्न हो जाती है एवं प्राणियों वनस्पितियों का जीवन समाप्त हो जाता है। इसके बाद सारा जल सूखकर वायुमंडल में विलीन हो जाता है और पृथ्वी गरम होकर लावा एवं उर्जा रूप में बदल जाती है पृथ्वी के साथ साथ सभी गृहों पर भी तापमान में वृद्धि होती है। जब सूर्य पर प्रज्वाल समाप्त हो जाते हैं एवं सूर्य सामान्य अवस्था में आ जाता है तब पृथ्वी पुनः ठंडी होने लगती है एवं वाष्प के बादल पृथ्वी को ढक लेते हैं जिससे सैकड़ों वर्षों तक पृथ्वी पर पानी बरसता रहता है शुरू के कई वर्षों तक यह पानी पृथ्वी की सतह तक न पहुंचकर उपर ही वाष्प में बदलता रहता है जब यह सतह तक पहुंचने लगता है तब समुद्र नदियों आदि का निर्माण होने लगता है। लगातार पृथ्वी कई वर्षों तक बादलों से ढकी रहने के कारण सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता जिससे हिमयुग  शुरू होता है इस हिम युग के कारण पृथ्वी की परत कई किलोमीटर नीचे तक ठंडी हो जाती है। जब बादल समाप्त होते हैं और सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचने लगता है तब पृथ्वी पर पुनः प्राणी एवं वनस्पतियों का जीवन शुरु होता है। इस संपूर्ण प्रक्रिया में करोड़ों वर्षों का समय लगता है।

महाप्रलयः- सूर्य का जीवनकाल पूरा होने पर अंतिम समय में सूर्य का आकार बढ़ने लगता है साथ ही अत्याधिक उर्जा उतपन्न होती है जिससे सूर्य के सभी ग्रह एवं उपग्रह जलकर उर्जा रूप में पखिर्तित होकर सूर्य में समा जाते हैं इसे विज्ञान की भाषा में सूर्य की सुपरनोवा स्थिति कहते हैं। जब सूर्य की उर्जा अपने चरम बिंदु पर पहुंच जाती है तब यह उर्जा रूप तरंग रूप में बदल जाता है और इससे उर्जा और प्रकाश निकलना बंद हो जाता है और सूर्य ब्लेक होल में पखिर्तित हो जाता है इस तरह एक सौरमंडल का अंत हो जाता है इसका फिर पुनर्जन्म नहीं होता। जब ब्रह्मांड में ब्लेक होल की संखया बहुत अधिक बड़ जाएगी तब नए तारों का जन्म होना बंद हो जाएगा इसके बाद ब्रह्मांड का अंत होगा।

                                          जैसा कि ईश्वर के प्रकरण में लिखा जा चुका है कि जड़ तत्व का सबसे छोटा कण परमाणु होता है एवं चेतन तत्व का सबसे सूक्ष्म रूप आत्मा होती है जो कि ईश्वर के चारों ओर प्रभामंडल के रूप में स्थित होती है। जड़ परमाणु के भीतर ही चेतन तत्व स्थित होता है एवं अलग से स्वतंत्र अवस्था में भी रह सकता है। चेतन तत्व के तरंग रूपी कण परमाणु को बिना तोड़े इससे बाहर निकल सकते हैं जैसे ही चेतन तत्व का एक कण बाहर निकलता है वैसे ही उसी प्रकार का दूसरा स्वतंत्र कण इसका स्थान ले लेता है अतः परमाणु की संरचना यथावत बनी रहती है इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता। दो या दो से अधिक परमाणुओं के मेल से एक अणु बनता है ऐसे असंखय अणुओं के मेल से दृश्य पदार्थ का निर्माण होता है तब हम इसे अपनी आंखों से देख पाते हैं। ठोस पदार्थ में अणु एक दूसरे से मजबूती से जुड़े होते हैं इस कारण ठोस पदार्थ स्थिर होते हैं। द्रव पदार्थ में अणु मजबूती से नहीं जुड़े रहते इस कारण इन्हें खुला छोड़ देने पर यह बहने लगते हैं वायु रूप में अणु आपस में जुड़े हुऐ न होकर अलग अलग होते हैं इसलिए वायु हमें आखों से दिखाई नहीं देती एवं हल्की होने के कारण वायुमंडल में बहती रहती है। विज्ञान ने लगभग 101 अलग अलग गुण वाले परमाणुओं की खोज की है परमाणु के भीतर स्थित इलेक्ट्रान, प्रोट्रान, न्यूट्रान आदि की संखया के आधार पर परमाणु के गुण अलग अलग होते हैं परमाणु में स्थित उपरोक्त कणों के भी अलग अलग सैकड़ों गुण होते हैं, इन अलग अलग गुण वाले परमाणुओं को विज्ञान की भाषा में तत्व कहते हैं इन सभी तत्वों के मेल से हमारा शरीर बना हुआ है। प्रत्येक तत्व के परमाणु में हजारों गुण होते हैं धर्मिक ग्रन्थों में गुणों की कुल संख्या तैंतीस करोड़ बताई गई है, अलग अलग गुणों के कारण ही धरती पर या ब्रह्मांड में हर चीज जड़, चेतन, प्राणी, वनस्पति आदि अलग अलग रूपों में दिखाई देते है यदि इन सभी गुणों को हटा दिया जाय तब सिर्फ निराकार ईश्वर ही शेष बच जाता है।

            यही सनातन धर्म दर्शन का सार है।

2 comments:

  1. It is an appreciable approach. However, the mystery of the universe could not be that simple to have been explored and explained!

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  2. आप के ब्लॉग पर पहली बार आया और बहुत अच्छा लगा...धर्म और विज्ञान की दूरी को कम करने और धार्मिक विश्वासों को विज्ञान की कसौटी पर कसने का आपका प्रयास सराहनीय है...आभार

    (ब्लॉग वेरिफिकेशन हटा दें तो कमेन्ट देने में सुविधा रहेगी)

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